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बाजारों में धूम, सारणी के छठ घाट, छठ पूजन के लिए तैयार

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जयराम प्रजापति की रिपोर्ट : 

भारतवर्ष में उत्तर भारतीयों का विशेष त्यौहार ‘छठ पूजन’ का उत्सव उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के अतिरिक्त विश्व में बसे सभी उत्तर भारतीयों के द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार छठ पर्व त्रेता युग से मनाया जा रहा है। श्रीराम एवं माता सीता के द्वारा अपने कुल एवं परिवार की सुख, शांति, समृद्धि हेतु मनाया था। महाभारत काल में ‘कर्ण’ एवं द्रोपदी के द्वारा ‘भगवान सूर्य नारायण’ को सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय जल अर्घ देकर सर्व मनोकामना की पूर्ति के लिए छठ व्रत का वर्णन मिलता है। इसी क्रम में ‘राजा प्रियव्रत एवं रानी मालनी’ निसंतानता से दुखी होकर, महर्षि कश्यप से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा, तब महर्षि कश्यप ने ‘पुत्र कामेष्टि’ पूजन कर महारानी को प्रसाद स्वरुप ‘खीर’ खाने को दिया। जिससे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, किंतु यह पुत्र अधिक समय तक जीवित न रहा, जब महाराज अपने पुत्र की अंत्येष्टि मोक्ष धाम पहुंचे तब उनके मन में पुत्र के साथ स्वयं के भी प्राण त्याग ने का विचार आया। जैसे ही महाराज अपने पुत्र को लेकर अपने प्राणों की आहुति का प्रयास किया, तभी ‘देवी देवसेना’ जिसे माता ‘छठ देवी’, ‘माता षष्ठी देवी’, ‘मां कात्यायनी’ के नाम से भी जाना जाता है, प्रकट हुई। तत्पश्चात ‘छठी माता’ ने महाराज को संतान के जीवन रक्षा एवं उसकी संतान आजीवन निरोगी रहने के लिए पूजन विधान का वर्णन किया। इस प्रकार संपूर्ण विश्व में पुरातन काल से ही भारतीय परंपराओं में ‘छठ पर्व’ का बड़े धूमधाम से आयोजित किया जा रहा हैं।

छठ उत्सव चार (4) दिनों तक चलने वाला पर्व मुख्यतः ‘सूर्य देव एवं माता छठी’ की पूजा अर्चना दिल के साथ मनाया जाता है
1. प्रथम दिन को ‘नहाय खहाय’ कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्रतधारी सुबह स्नान कर ‘सूर्य नारायण देव’ को जल अर्पण कर पूरे दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक) व्रत करते हैं। संध्या के समय पुनः ‘रवि देव’ को जल अर्घ देने के पश्चात ‘लौकी एवं चना दाल’ से बना हुआ भोजन का भोग लगाकर अपने व्रत उपवास खोलते हैं।

2. दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्रतधारी सुबह स्नान कर ‘सूर्य नारायण देव’ को जल अर्पण कर पूरे दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक) निर्जला व्रत करते हैं। संध्या के समय पुनः ‘भास्कर देव’ को जल अर्घ देने के पश्चात व्रतधारी, ‘निर्जला व्रत’ को धारण करते हैं एवं सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर, जिसे ‘रसिया खीर’ कहते हैं साथ ही गेंहू, दूध, मिश्री आदि से बना हुआ विशेष मिष्ठान ‘ठेकुआ’ का भोग लगाकर अपना व्रत खोलते हैं।
3. तीसरे दिन को ‘संध्या अर्घ’ कहते हैं। इस दिन व्रतधारी सूर्य को जल अर्घ देकर (सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय की पूजा के पश्चात तक) अपने व्रत की समाप्ति करते हैं। प्रायः हर व्रत धारी किसी जल स्रोत में खड़े होकर सूर्य देव को जल अर्घ देता है। इस दिन जल स्रोत अर्थात घाट तक परिवार का कोई वरिष्ठ पुरुष जैसे ‘पति या बेटा’ बांस की बनी टोकरी जिसे ‘बेहेंगी’ कहा जाता है, जिसमें पूजन सामग्री प्रसाद एवं फल को अपने सिर पर धारण कर ‘पूजन घाट’ तक ले जाता है।
4. चौथा अन्तिम दिन ‘ऊषा अर्घ’ कहा जाता है। इस दिन उदित होते ‘सूर्य नारायण देव’ को जल अर्घ दिया जाता है। साथ ही छठी माता की आरती, गीत, भजन आदि किया जाता है। पूर्ण पूजन के पश्चात अंत में कच्चे दूध एवं प्रसाद वितरण करने के पश्चात स्वयं प्रसाद ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है।

आपको बता दे कि छठ पर्व का उत्तर भारत में विशेष महत्व है। इस पर्व को मनाने के लिए भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय द्वारा उत्तर भारत के लिए ‘विशेष ट्रेनों’ का संचालन किया जाता है। यह पर्व उत्तर भारतीयों में आपसी भाईचारा, सौहार्द एवम् सामाजिक समरसता को दर्शाता हैं । इस पर्व में लोग जाति, धर्म एवं संप्रदाय को भूलकर बड़े प्रेम पूर्वक मनाते है। यह उत्सव उत्तर भारतीयों के लिए दिवाली पर्व के समान है। इस दिन इस पर्व को सभी लोग नए वस्त्रों को धारण कर ‘भगवान सूर्य देव एवं माता छठी’ से विश्व कल्याण, विश्व शांति “वसुदेव कुटुंबकम की भावना को लेकर प्रार्थना करते हैं। आप सभी को छठ पर्व की कोटि-कोटि शुभकामनाएं!