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धनतेरस पर दुल्हन की तरह सजी दुकाने तैयार, व्यापारी कर रहे इंतजार

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जयराम प्रजापति की रिपोर्ट:

दीपावली के विश्व विख्यात परम पावन पर्व संपूर्ण विश्व में बड़े ही उत्सव के साथ मनाया जा रहा है। यह वर्ष प्रत्येक माह नवंबर माह जिसे कार्तिक माह भी कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के 13 दिन ‘धनतेरस’ के रूप में मनाया जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार आज के दिन घर में लाया गया कोई भी नया सामान मां लक्ष्मी को गृह प्रवेश करवाने जैसा माना जाता है। आज के दिन खरीदे गए सामान से घर में सुख, शांति एवं समृद्धि कई गुना आती है; इसीलिए प्रत्येक गरीब से गरीब व्यक्ति इस दिन कुछ न कुछ उपयोगी सामान जरूर खरीदता है। धनतेरस के बाद 14 दिन ‘नरक चौदस’ एवं 15 दिन कार्तिक अमावस्या की रात को दीपावली का परम पावन त्यौहार मनाया जाता है। ज्योतिषीयों, अघोरियों एवं तांत्रिकों दृष्टि से कार्तिक अमावस्या की रात कई योगिनीयों, तंत्रों, मंत्रों, यंत्रों, एवं विशेष सिद्धियो को सिद्ध करने की एक विशेष रात्रि होती है।


इस बार आपको बता दे कि कोल डायमंड टाउन-एनसीडीसी एवं विद्युत नगरी-सारणी में आम जनता के बीच दीपावली का उत्सव फीका एवं बेरंग दिखाई दे रहा है। देश के राजनेताओं द्वारा बनाई गई नीतियों के कारण आज वर्तमान में महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है। आम आदमी दो रोटी के लिए मशक्कत कर रहा है। दैनिक अनिवार्य वस्तुओं जैसे गेहूं, चावल, दाल, शक्कर, तेल, नमक, हल्दी, मिर्च, धनिया, एवं दूध आदि के दाम में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। ग्राहक ही नहीं व्यापारियों की स्थिति भी दयनीय बनी हुई है। व्यापारी दुकानों को दुल्हन की तरह सजाकर ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं। ग्राहकों को अपने लिए भगवान मानने वाले व्यापारी टकटकी लगाए, अपने भगवानों की ओर देखते हैं किंतु ‘भगवान’ दुल्हन रूपी दुकानों की ओर देखना भी पसंद नहीं कर रहे हैं। जब लोगों के पास आय ही नहीं रहेगी, तो उसे खर्च कैसे करेंगे? इन औद्योगिक नगरों के आसपास के क्षेत्र का भी यही हाल है। बेरोजगारी का संकट अपने चरम पर है। कई मामलों में युवा मानसिक रोगी बन चुके हैं। कईयों को अपराध की दुनिया में प्रवेश लेने पर मजबूर होना पड़ा। कईयो ने आत्महत्या की नाकाम कोशिश की, फिर भी प्रशासन जाग नहीं रहा है।


हम भारतवासी बड़े सहनशील होते हैं। हर हाल में जीना हमारी फितरत है। कम में गुजारा करना हमारी संस्कृति है। मिल जुलकर एक दूसरे के सुख-दुख में साथ देना और आपस में बांटकर खाना, यह भारत की सदियों से परंपरा रही है। इसी पर परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है। क्योंकि कार्तिक मास में ठंड बहुत अधिक बढ़ जाती है, जिससे नवजात बच्चे, प्रसूति माताओं एवं बुजुर्गों में सर्दी, खांसी एवं निमोनिया होने का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है। ऐसे में पटाखों के जलने से उत्पन्न हुए जहरीले धुएं एवं दुर्गंध के कारण, सभी को सांस लेने में परेशानी, दमा, आंखों में जलन, चक्कर आना, उल्टी, बेचैनी जैसी अनेक गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती है। इसलिए बच्चे एवं आप सुरक्षित ढंग से पड़ोसियों को बिना परेशान किए, कम पटाखे, बम, अनार, एवं ‌‌राकेट जलाकर दीपावली का त्योहार शांतिपूर्वक मनाएं। नकली मिठाइयों एवं घटिया मिली जुली खाद्य चीजों को खाने से बचें। ‘स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। यदि आप स्वस्थ हैं तो आपका परिवार शांति से हर दिन एक त्यौहार मना सकता है।’ आप सभी की दीपावली मंगलमय हो।