चाइना से आई झालर हटाने खर्च हुए 50 लाख, अब उग आई खर पतवार
जयराम प्रजापति की रिपोर्ट:
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल में ब्लैक डायमंड सिटी- एनसीडीसी, विद्युत नगरी, सारनी और अपने आसपास अनेक गांवों को बसाने वाला ‘सतपुड़ा जलाशय’ अपने स्वर्णिम इतिहास को आज बचाए रखने का प्रयास कर रहा है। क्योंकि सतपुड़ा बांध ने जिन दो उद्योग नगरियों को अपनी विशेष सेवा निरंतर दे रहा है; आजादी से 60 वर्षों से अधिक होने के बाद भी इस पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया।
दुर्भाग्यवश अचानक ‘चाइनीस झालर’, जलकुंभी, जल कुमुदिनी, जल कमल, शैवाल, बड़ी घास के सरकंडो, आदि अनेक प्रजातियों की वनस्पतियो की बाढ़ सी आ गई। शांत स्वभाव वाले सतपुड़ा बांध में ‘चाइनीस झालर’ ने’ दिन दुनी, रात चौगुनी’ की रफ्तार से इस प्रकार फैली कि सतपुड़ा बांध की सांस थमी जा रही थी और इस बांध के जलीय सतह का एक बड़ा हिस्सा इनकी चपेट में आ गया था।
जिसका परिणाम यह हुआ कि इस बांध के जल में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन जैसी गैसों की मात्रा, पोषक खनिज तत्व, सूर्य के प्रकाश की अत्यंत कम हो गई, इस बांध के जल में जीवन यापन करने वाले अनेक जलीय जीव जैसे मगरमच्छ, घड़ियाल, मछलियां, झींगे, केकड़े, सांप, बिच्छू, आदि के लिए दुश्मन बन गई।
आपको बता दे कि यह वही सतपुड़ा जलाशय है जिसके माध्यम से मत्स्य विभाग, जल संसाधन विभाग, विद्युत विभाग, कोयला विभाग एवं नगर पालिका, सारनी ने कई करोड़ रुपए कमाए। साथ ही इन नगरो के अतिरिक्त अनेक गांवों के किसानो, आम नागरिकों, जीव जंतुओं एवं वनस्पतियों को जल एवं रोजगार उपलब्ध कराया। इसकी सहायता से अनेक मछुआरों परिवार की रोजी-रोटी चली और अभी भी चल रही है किंतु सभी ने इसका निरंतर दोहन किया। इसकी देखरेख के ऊपर किसी का ध्यान नहीं दिया।
वर्तमान में ‘चाइनीस झालर’ सतपुड़ा बांध के लिए सर दर्द बन गई और चाइनीस झालर के शिकंजे में इस तरह जकड़ लिया है कि अपने अलावा अपने अंदर जीवन यापन करने वाले करोड़ो जीव जंतुओं के जीवन पर संकट मंडरा रहा है, मतलब की ‘मत्स्य विभाग’ की कमाई कम होने लग गई। सैकड़ो मछुआरे परिवार की आजीविका खतरे में आ गई।
चाइनीस झालर और अनेक जलीय पौधों ने अपना विकराल रूप धारण करने से आलम यह था कि कई मीटर तक सतपुड़ा बांध के किनारो का पानी दिखाई ही नहीं दे रहा थी । जहां देखो वहां नजर करने पर पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक चाइनीस झालर ही झालर दिखाई देते जा रही थी ।
भाजपा सरकार का कहना है कि उनके द्वारा 50 लाख रुपए की लागत से नष्ट किया गया है किंतु हकीकत कुछ और ही बयां करती है यदि आज आप सतपुड़ा बांध के किनारो को देखें तो इसके किनारो से कई मीटर संभवत किलोमीटर में फैली हुई चाइनीस झालर आज भी स्पष्ट देखने को मिल पा रही है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ सतपुड़ा बांध में चाइनीस झालर ही एक समस्या है इसके अतिरिक्त सभी जंगली वनस्पतियां ही दिखाई दे रही है।
आपको बता दे कि सतपुड़ा बांध का पानी के प्रदूषण स्तर की जांच किसी भी विभाग के द्वारा प्रतिवर्ष नहीं कराई जाती है। जबकि इस पानी से लाखों लोगों की प्यास प्रतिदिन बुझाई जा रही है। ऐसे में आम नागरिक को एवं सरकार का दायित्व है कि इस प्राकृतिक संसाधन का हम प्राथमिकता के साथ संरक्षण करें ताकि भविष्य में पर्यावरण में पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखा जा सके।