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जगह जगह ताजिया और सवारियाँ शहर में भ्रमण करती रही -हाथो में तिरंगा और शांति सन्देश लिए लोग निकले

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सुनील यादव की रिपोर्ट 

मुस्लिम धर्मावलम्बी के परम्परा अनुसार मनाये जाने वाला इस्लाम मजहब का नए वर्ष की सुरुआत मोहर्रम के महीने से होती है और इस्लाम के सबसे बड़े इस्लामिक जंग जिसे कर्बला के मैदान में इस्लाम के इमाम हसन और हुसैन के खानदान के खिलाफ एक बड़ी साजिश दुश्मने इस्लाम मे रची रही जिसका इतिहास है कि हक और बातिल के बीच हुई और आज भी इस याद में मोहर्रम पर्व उन शहीदों के याद में जगह जगह कर्बला के मैदान में हुई घटना को याद कर उन जगहों का जिक्र किया जाता है।

मोहर्रम में सबसे खास दिन यौमे आशूरा का दिन जो मोहर्रम के 10 वे दिन आशुरे की दुआ की जाती है, जिसका एक अपना महत्व है,व रोजा रखा जाता है जो सभी मुस्लिम समुदाय के लोग 9 व 10 मोहर्रम में दो दिन का रोजे रखते है।

मोहर्रम में कर्बला के याद में आग पर चलकर जिसे अलाव कहा जाता है,जिस अलाव पर कर्बला के मैदान में एक वाक्यात को याद कर उसे आज भी दोहराया जाता है ये अलाव मोहर्रम के रात को गरम गरम अंगारो पर चलना और उससे गुजरना, आप देखे एक अलाव जो तैयार है जिस पर लोग आसानी से चलकर पार करते है।

मोहर्रम के चल समारोह में एक नजारा अपने आप मे देश भक्ति और आतंकवाद के खिलाफ मुस्लिम समाज का संदेश देता हुआ देख सकते है जिसमे हाथो में तिरंगा और सन्देश लिए लोग निकल रहे जिसकी सराहना भी हुई।

जगह जगह ताजिया और सवारियाँ शहर में भृमण करती हुई अपने जुलूस के साथ चल समारोह में भव्यता को बिखेरते और आम जन देर रात तक ताजियों का दर्शन ज्यारत कर रहे और रास्ते मे हर तरफ लंगर का अनेको कमेटियाँ इंतजाम की जो चल समारोह में आये श्रद्धालुओ को वितरण करते रहे।