जिले में नहीं हो रहा एनजीटी के निर्देशों का पालन – ज्यादातर उद्योग और संस्थान -पर्यावरण नियमों से अनजान
विशेष संवाददाता – अनादि मिश्रा
- जिलों में भी पालन नहीं हो रहे है नहीं किया जा रहा है, एनजीटी के आदेशों का
कॉसर
1 मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल कर रहा है महज कागजी खानापूर्ति
2 ज्यादातर होटल चल रहे हैं बगैर पर्यावरण सम्मतियों के
3 अस्पतालों और होटलों में बगैर ग्राउंड वाटर एनओसी के खींचा जा रहा है भूजल – ज्यादातर उद्योग और संस्थान -पर्यावरण नियमों से अनजान
भोपाल/बैतूल। अगर यह माना जा रहा है कि सरकार के फैसलों का प्रदेश के प्रमुख शहरों, जिलों में सही ढंग से पालन किया जा रहा है, तो यह पूरी सच्चाई नहीं है। परंतु अगर यह माना जाए कि प्रदेश के अन्य जिले खास तौर से छोटे जिलों में सरकारी आदेशों और अधिकरण के आदेशों का बिल्कुल भी पालन नही हो रहा है, तो वह शब्दश: सच्चाई है। हाल ही में ये सच्चाई बैतूल जिले के होटल्स और अस्पतालों के मामले में उजागर हुई है, जहां पर्यावरणीय नियमों को लेकर जारी होने वाले निर्देश सिर्फ कागजी दौड़ ही लगा रहे है।
मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नई दिल्ली के एक आदेश ओए क्रमांक 400/2017 जारी दिनांक दिसंबर 2019 से जुड़ा हुआ है। इस आदेश के मुताबिक प्रदेश के जिले में संचालित होटल्स, रेक्टोरेंट, मोटल्स, बैंक्वेट हॉल्स में प्रदूषण के नियंत्रण और पर्यावरण नियमों को लागू करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल दिल्ली ने प्रदेश के मुख्य सचि को 19 मार्च 2020 को एक पत्र जारी किया है जिसकी प्रति सदस्य सचिव प्रदूषण मंडल की दी गई है। आदेश के मुताबिक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने व्यक्तिगत संस्थान और रेस्टारेंट, होटल्स, मोटल्स, इत्यादि के एरिया / क्लस्टर पर प्रदूषण नियंत्रण तथा पर्यावरण नियमों के पालनार्थ दिशानिर्देश जारी किए हंै। इस दिशानिर्देशों में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, ध्वनि प्रदूषण, भूजल निष्कर्षण इत्यादि पर विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।सबसे महत्वपूर्ण जल तथा वायु सम्मतियां
इन दिशानिर्देशों में सबसे महत्वपूर्ण है कि उक्त वर्णित संस्थानों को संचालन हेतु मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल से जल अधिनियम 1974 की धारा 25 एवं 26, वायु अधिनियम की धारा 21 के तहत स्थापना एवं संचालन हेतु सम्मतियां लेना आवश्यक है। भूजल का उपयोग करने पर केंद्रीय भूजल मंडल से बोरवेल उपयोग के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना जरूरी है। अगर उक्त गाइड लाइन को संक्षेपित किया जाए तो महत्वपूर्ण तथ्य है कि इन संस्थानों में ईटीपी/ एसटीपी की संस्थापना तथा उनके संचालन का होना जरुरी है ताकि वहां से डिस्चार्ज होने वाले दूषित पदार्थ, दूषित जल प्रदूषण उत्पन्न न करें। निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो माननीय एनजीटी के आदेश क्र. 438/2017, दि. 17.10.22, 400/2017 दि. 23.07.20 तथा 593/2017 दि. 21.03.20 के पालनार्थ प्रत्येक उद्योग, होटल, रेस्टारेंट, मैरिज गाार्डन, बैंक्वेट हॉल और संस्थान को भूजल का अनापत्ति प्रमाणपत्र, जल, वायु अधिनियम के तहत सम्मतियां, ठोस अपशिष्ट का नियमानुसार प्रबंधन, इत्यादि का पालन आवश्यक है।
इस दिशानिर्देश के अनुसार में कहीं भी सही ढंग से काम नहीं हो रहा है। कई संस्थानों में बगैर ईटीपी, एसटीपी के सम्मतियां प्रदान की जा रही है। भूजल की अनापत्ति लेना है, इसके बारे में अधिकांश लोगों को ज्ञान ही नहीं है। कुल मिलाकर कहें तो न तो संस्थानों को इन पर्यावरण नियमों का पता है और ना ही संबंधित प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय इस दिशा में गंभीरता से पालन कर पा रहे है।
नियमों के उल्लंघन पर है दंड का प्रावधान
अमूमन लोग पर्यावरणीय नियमों को गंभीरता से नही लेते हैं। उन्हें लगता है कि सरकारी नोटिस सिर्फ कागजी धमकी है। जैसा कि लोगों में आम धारणा है, संस्थान के संचालक ये मानते हैं कि ऐसे नोटिस सिर्फ किसी इनायत का हिस्सा है। और यदि कोई ठोस कार्रवाई विभाग की ओर से नही की जाती है तो उनकी अवधारणा और मजबूत हो जाती है।
गौरतलब है कि बगैर सम्मतियों के निरंतर कार्य करना जल तथा वायु अधिनियमों की धारा 44 तथा धारा 37 के तहत न्यायालयीन कार्रवाई की जा सकती है। इसमें दंड का प्रावधान भी है। अधिनियमों की धारा क्रमश: 31 क तथा $33 क के तहत संस्थान को बंद करने का भी प्रावधान है। बिना अनुमति के भूजल निष्कर्षण पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 5 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है।
प्रदूषण को रोकने के लिए बनी है गाइडलाइन
दरअसल, पर्यावरण नियमों के आधार पर जारी किए गए दिशानिर्देश बिना किसी ठोस वजह के यूंही नही बनाए गए हैं। हकीकत यह है कि कई स्रोतों से बहकर आने वाला दूषित जल हमारी नदियों, तालाबों, झील, तथा अन्य जल स्रोतों में समा जाता है। लगभग 85 फीसदी पानी हमारे वातावरण में दूषित रूप में समाता है। ये दूषित पानी सैकड़ों बीमारियों की जड़ है। अमूमन पानी का उपयोग घरों, अस्पतालों, होटल्स, रेस्टारेंट, शादी हाल, शॉपिंग मॉल, ऑटोमोबाइल वर्कशॉप, टेक्सटाइल, खाद्य, मिल्स और अन्य उद्योगों में किया जाता है। दूषित जल की गंभीर समस्याओं को देखते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले (पर्यावरण सुरक्षा समिति विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया) में दिनांक 22.07.2017 को निर्देश पारित किया जिसका अनुसरण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मूल आवेदन क्र. 593/2017 दि. 22.07.21 पर किया। इस आदेश के अनुसार 31.03.18 तक प्रत्येक ऐसे संस्थानों में ईटीपी / एसटीपी की स्थापना तथा संचालन अनिवार्य कर दिया। इसी तरह केंद्रीय भूजल मंडल ने भी भूजल निकालने के लिए अनापत्ति पत्र 24.09.22 को जारी कर दिया। एनजीटी के आदेश क्रमांक 400/ 2017 दि 23.07.20, और क्र. 438/2018 दि. 17.10.22 पर्यावरणीय नियमों के पालन को लेकर ही जारी किए गए हैं। चूंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 19 मार्च 2020 को प्रदेश के मुख्य सचिव तथा सदस्य सचिव मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल को जारी किया है तो जाहिर है एनजीटी के इन आदेशों का पालन जिला तक स्तर पर होना चाहिए।
जमीनी हकीकत क्या है?
माननीय एनजीटी के आदेश और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के दिशानिर्देशों को जारी हुए लगभग तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं, मगर इनके पालन करवाने की गति मंद है। जब सूचना के अधिकार के तहत कुछ प्रदूषण नियंत्रण मंडल से जानकारियां हासिल की गईं, तो बेहद निराशाजनक परिणाम दिखाई दिए। कई आवासीय प्रोजेक्टों की सम्मतियों का नवीनीकरण ही नही हुआ। कई होटल्स ने सम्मतियां ली ही नही हंै। कई ऑटोमोबाइल वर्कशॉप भी इसी कतार में हैं। अस्पतालों से दूषित जल उपचारित किया जा रहा है, इसका कोई प्रमाण ही नहीं है। और ग्राइंड वॉटर की एनओसी का क्या कहें, वह तो 99 फीसदी संस्थानों के पास है ही नहीं। कुछ मंडलों ने तो गतवर्ष ही होटल्स, ऑटो मोबाइल सर्विस सेटर, अस्पतालों को पर्यावरणीय अनुमति लेने का सूचना पत्र लिखा है और कुछ मंडल तो वर्ष 2020 से निवेदन ही कर रहे हैं मगर कार्रवाई कुछ भी नहीं।
जागरूकता और कार्रवाई दोनों जरूरी
सिर्फ कार्रवाई ही हो ऐसा संभव नहीं। मगर इसके साथ जागरूकता भी जरूरी है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल और भूजल मंडल सिर्फ कागजी कार्रवाई करते रहेंगे तो आगामी एक दशक तक एनजीटी के नियमों को पालन नही होगा। जब तक जिम्मेदार अधिकारी हड़ता के साथ काम नही करेंगे तब तक जमीनी स्तर पर असर नही दिखेगा। जब तक बेपरवाह अधिकारियों पर जिला स्तर पर कलेक्टर तथा राज्य स्तर पर उच्चाधिकारी सही कार्रवाई नही करेंगे तब तक ना तो प्रदूषण पर नियंजन हो सकेगा और ना ही एनजीटी के आदेशों का पालन होगा।
ग्राउंड रिपोर्ट : जिला बैतूल
माननीय एनजीटी के आदेशों जो कि दूषित जल उपचार, प्रदूषण रोकने तथा पर्यावरण नियमो के पालन, तथा भूजल निष्कर्षण को लेकर थे, उस पर गत दिवस जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया गया। जिला बैतूल मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय छिंदवाड़ा के अधीन है। यहां के क्षेत्रीय अधिकारी बैतूल की 22 होटलों को नोटिस दे चुके हैं। इन नोटिसों की संख्या चार तक हो चुकी है। मार्च 2020 से अप्रैल 2023 तक भेजे नोटिसों पर किसी एक को छोडक़र किसी ने भी तवज्जो नहीं दी है। बैतूल में संचालित लगभग 34 अस्पतालों ने दूषित जल उपचार की जल विश्लेषण रिपोर्ट नहीं दी है, जिससे ये प्रमाणित हो सके कि उनके संस्थान में ईटीपी/ एसटीपी कार्यरत है अथवा नहीं? ताज्जुब है कि उल्लंघनकर्ता संस्थानों को नोटिस तो तीन साल से दिए गए, मगर कानूनी कार्रवाई के लिए मंडल ठोस कदम नहीं उठा पाया।
इस मुद्दे पर जिला कलेक्टर श्री अमनवीर सिंह से जब चर्चा की गई, तो उन्होंने रिपोर्ट साझा करने तथा उचित कार्रवाई करने की बात कही। एनजीटी के आदेशों का जिला स्तर पर कितना पालन हो रहा है, इसका नमूना जिला बैतूल से मिला है। प्रदेश के अन्य जिलों से भी जमीनी हकीकत पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास जारी रहेगा।