आदिवासी परिवारों की रोंगटे खड़े करने वाली विवशता
सुनील यादव जिला ब्यूरो
कटनी जिले के ढीमरखेड़ा आदिवासियों के उत्थान और क्षेत्र के विकास के लिए सरकारी दावे ढीमरखेड़ा तहसील क्षेत्र की ग्राम पंचायत कचनारी के करौंदी गांव में बेमानी साबित हो रहे हैं। यहां के आदिवासी परिवारों की विवशता रोंगटे खड़े करने वाली है। बारिश में पूरा मार्ग दलदल में तब्दील हो गया है। बच्चे दलदल के बीच जान को जोखिम में डालकर स्कूल पहुंच रहे हैं तो वहीं गांव में यदि कोई बीमार हो जाता है तो फिर उसे बल्ली के सहारे झोली-डोली बनाकर कांधे में लादकर ले जाने की गंभीर विवशता बनी हुई है। यह समस्या किसी भी अफसर, जनप्रतिनिधि को नजर नहीं आ रही। लगभग 20 से 25 साल पहले बसे आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत कचरानी का आश्रिम गांव करौदी के लगभग तीन दशक बीतने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।
ग्रामीणों ने बताया की गांव तक पहुंचने के लिए उन्हें मुख्य मार्ग से तकरीबन 2 किलोमीटर कच्चीऔर कीचड़ भरी सड़क को पार कर जाना पड़ता है। कई साल बीत गए लेकिन आजतक मेन सड़क से गांव तक सड़क नहीं बनी। बच्चों के पड़ने के लिए गांव में स्कूल भी नहीं है। आंगनवाड़ी केंद्र की सुविधा भी गांव से नदारद है। गांव में आशा कार्यकर्ता भी नहीं है। और बीमार लोगो को एक कबाड़ बना उन्हे कांधे में लेकर 2 किमी मेन सड़क तक ले जाना पड़ता है फिर सिलौड़ी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेजाकर उपचार करा जाता है। बीच रास्ते में नाला भी पड़ता है, जान जोखिम में डालकर बच्चे व ग्रामीण पार करते हैं। लोगों ने बताया कि मुख्य मार्ग पैदल लेकर चलते हैं, फिर किसगी गांव में उनके दो पहिया वाहन रहते हैं।
जिससे फिर वे गंतव्य वल्ली व चादर के सहारे झोली बनाई, के लिए जाते हैं। सड़क, आंगनबाड़ी, स्कूल, आशा कार्यकर्ता ना होने के कारण ग्रामीणों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। गांव के बुजुर्ग या फिर अन्य बीमार हो जाते हैं तो उन्हें झोली डोली बनाकर कांधे में लादकर स्वास्थ्य केंद्र ले जाना पड़ता है। बीते दिनों तेज बारिश के कारण सड़क दलदल में तब्दील हो गई है। गांव की एक महिला को घर में ही प्रसव कराना पड़ा. जिससे जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा बन आया था। छोटे बच्चों को दलदल भरी सड़क से स्कूल पढ़ने जाना पड़ रहा है। आंगनबाड़ी केंद्र ना होने के कारण छोटे बच्चों को पोषण आहार एवं महिलाओं को टीकाकरण भी समय पर नहीं हो पा रहा।