यूजर्स सोशल मीडिया को हलके में ना लें , एक गलती पंहुचा सकती है जेल क्या है, नए दिशा-निर्देश
मनोहर
(इस लेख का आशय कोई भ्रम फैलाना या किसी सोशल प्लेटफार्म के प्रति भय भीत करना नहीं है। अपितु नए यूजर्स को जागरूक करना है। इस लेख का किसी राजनैतिक दल या व्यक्ति से लेना देना नहीं है। सोर्स -इंटरनेट )
आज कल सोशल मीडिया इंसानी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। व्यक्ति अपने विचार, सहमति-असहमति सब कुछ सोशल मीडिया पर व्यक्त करने लगा है। लेकिन अक्सर हमारे देखने में यह भी आता है कि सोशल मीडिया में ऐसे भी कई लोग हैं जो ग़लत कमेंट या पोस्ट करते हैं। हम ये देख कर भले ही आगे बढ़ जाते हों मगर सच ये है कि इस तरह के ग़लत कमेंट और पोस्ट करना भी अपराध की श्रेणी में आता है। इसे ऐसे समझे -ये सोशल प्लेट फ़ार्म किसी और की प्रापर्टी है। आपको यहाँ बिना किसी शुल्क रहने को दिया गया है। जिसके कुछ रूल्स है। जिसे आपको फॉलो करना होगा। जिसकी सहमति आप जब किसी भी सोशल मिडिया प्लेटफार्म पे अकाउंट क्रिएट करते है तो सब्मिट करते ही आप उन नियमो को मानने की सहमति दे देते है। आप यहां पर मालिक नहीं है। यदि आप उन नियमों को तोड़ते है तो आपका अकाउंट बंद किया जा सकता है। खुद भी सजग रहे और दुसरो को भी ऐसा करने से रोके। समर्थन ना करें। विचारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूर है। लेकिन मानहानि की नहीं।
इसके अलावा सोशल मीडिया पर ग़लत कमेंट करने पर सजा के लिए प्रावधान बने हुए हैं। हां लेकिन आप तब तक बचे है जब तक कोई उक्त स्क्रीन शॉट ऑडियो वीडियो (बतौर सबूत) सहित शिकायत नहीं करता। यह बात अलग है कि हम अक्सर या तो इन प्रावधानों से अनभिज्ञ होते हैं या पता होते हुए भी नज़रंदाज़ कर देते हैं। आज इस लेख में आइये समझते हैं कि सोशल मीडिया पर ग़लत कमेंट करने पर क्या सज़ा मिलती है?
भारतीय कानून में इस प्रकार की कोई सीधी धारा नहीं है जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया पर ग़लत कमेंट करने पर सज़ा का प्रावधान हो परन्तु सोशल मीडिया पर ग़लत कमेंट करने पर सजा आई पी सी एवं आई टी एक्ट 2000 के तहत दी जा सकती है।
आईपीसी की धारा 499 में ‘मानहानि’ को डिफाइन किया गया है. इसके अनुसार अगर कोई बोलकर, लिखकर, पढ़कर, इशारों या तस्वीरों के जरिए किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर लांछन लगाता है तो इसे मानहानि माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अनुसार, जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए सादा कारावास से जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
इससे बचने का एक ही रास्ता है और वो है उसी प्लेटफार्म पर संशोधन या गलती स्वीकार कर माफ़ी मांग लेना। या किसी तकनीकी गड़बड़ी होने हेतु सुचना जाहिर कर देना।
आई टी एक्ट की धारा 67
आई टी एक्ट 2000 , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से किये जाने वाले अपराधों को रोकने एवं उस से जुड़े अपराधों की सज़ा देने के लिए बनाया गया था। सोशल मीडिया से सम्बंधित अपराध भी आई टी एक्ट के अंतर्गत ही आते हैं। आई टी एक्ट की धारा 67 के अंतर्गत सोशल मीडिया पर या कहीं अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में किसी ग़लत कमेंट, अश्लील सामग्री आदि पब्लिश करने पर दंड का प्रावधान है। जुर्माने के साथ साथ 3 सालों तक सज़ा जो बढ़ाया भी जा सकता है।
आई पी सी की धारा 153 A, 153 B, 292, 295 A और 499 के तहत सोशल मीडिया और किसी व्यक्ति को अपमान जनक सन्देश और उसके ख़िलाफ़ ग़लत कमेंट करने पर सजा का प्रावधान है। इन सभी धाराओं में ऐसी बहुत सी बातों के लिए सजा के प्रावधान हैं जो सोशल मीडिया पर ज़्यादा फैली हुई थी , इनके अंतर्गत सोशल मीडिया के माध्यम से साम्प्रदायिकता फैलाना, धार्मिक भावनाओ को आहत करना, अश्लीलता फैलाना , किसी पर ग़लत कमेंट करना आदि शामिल हैं। इन सभी धाराओं के अंतर्गत सोशल मीडिया पर ग़लत कमेंट करने पर सज़ा का प्रावधान है।
इस के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी आपत्ति जनक पोस्ट पर लाइक अथवा कमेंट करना भी सही नहीं है। ऐसा करने का मतलब है कि आप उस विचार का समर्थन करते हैं और आपको भी आई टी एक्ट के अंतर्गत उतनी ही सजा हो सकती है जितनी कि पोस्ट पब्लिश करने वाले व्यक्ति को।
आई टी एक्ट की धारा 67 A
आई टी एक्ट की धारा 67 A बहुत ही संगीन जुर्म से जुड़ी हुई है। दरअसल आई टी एक्ट की धारा 67A सोशल मीडिया या अन्य किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बच्चों को किसी भी यौन कृत्य में सम्मलित करने वाली सामग्री को प्रसारित करने, बनाने या आगे भेजने को प्रतिबंधित करता है साथ ही इस के लिए सज़ा भी देता है। आई टी एक्ट की धारा 67A के तहत आरोपी को पांच वर्ष की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। वहीं आई टी एक्ट की धारा 67 A के तहत यदि आरोपी दूसरी बार इस जुर्म में पकड़ा जाता है तो सजा सात साल तक बढ़ाए जा सकने के प्रावधान हैं।
आईटी नियम, 2021 में प्रमुख संशोधन:
- सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिये नए दिशा-निर्देश:
- वर्तमान में मध्यस्थों को केवल उपयोगकर्त्ताओं के लिये हानिकारक/गैरकानूनी सामग्री की कुछ श्रेणियों को अपलोड नहीं करने के बारे में सूचित करने की आवश्यकता है। ये संशोधन उपयोगकर्त्ताओं को ऐसी सामग्री अपलोड करने से रोकने के लिये उचित प्रयास करने हेतु मध्यस्थों पर एक कानूनी दायित्व आरोपित करते हैं। नया प्रावधान यह सुनिश्चित करेगा कि मध्यस्थ का दायित्त्व केवल एक औपचारिकता नहीं है।
- इस संशोधन में मध्यस्थों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत उपयोगकर्त्ताओं को मिले अधिकारों का सम्मान करने की आवश्यकता है, इसलिये इसमें उचित तत्परता, गोपनीयता और पारदर्शिता की अपेक्षा की गई है।
- मध्यस्थ के नियमों और विनियमों के प्रभावी संचार हेतु यह महत्त्वपूर्ण है कि संचार क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में भी किया जाए।
- वर्तमान में मध्यस्थों को केवल उपयोगकर्त्ताओं के लिये हानिकारक/गैरकानूनी सामग्री की कुछ श्रेणियों को अपलोड नहीं करने के बारे में सूचित करने की आवश्यकता है। ये संशोधन उपयोगकर्त्ताओं को ऐसी सामग्री अपलोड करने से रोकने के लिये उचित प्रयास करने हेतु मध्यस्थों पर एक कानूनी दायित्व आरोपित करते हैं। नया प्रावधान यह सुनिश्चित करेगा कि मध्यस्थ का दायित्त्व केवल एक औपचारिकता नहीं है।
- नियम 3 में संशोधन:
- नियम 3 (नियम 3(1)(बी)(ii)) के उपखंड 1 के आधारों को ‘मानहानि कारक’ और ‘अपमानजनक’ शब्दों को हटाकर युक्तिसंगत बनाया गया है।
- क्या कोई सामग्री मानहानि कारक या अपमानजनक है, यह न्यायिक समीक्षा के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा।
- नियम 3 (नियम 3(1)(बी)) के उपखंड 1 में कुछ सामग्री श्रेणियों को, विशेष रूप से गलत सूचना और ऐसी अन्य सामग्री से निपटने के लिये फिर से तैयार किया गया है जो विभिन्न धार्मिक/जाति समूहों के बीच हिंसा को उकसा सकती है।
- नियम 3 (नियम 3(1)(बी)(ii)) के उपखंड 1 के आधारों को ‘मानहानि कारक’ और ‘अपमानजनक’ शब्दों को हटाकर युक्तिसंगत बनाया गया है।
- शिकायत अपील समिति का गठन:
- उपयोगकर्त्ता शिकायतों पर मध्यस्थों द्वारा लिये गए निर्णयों या निष्क्रियता के खिलाफ उपयोगकर्त्ताओं को अपील करने की अनुमति देने हेतु ‘शिकायत अपील समितियों’ का गठन किया जाएगा।
- हालाँकि उपयोगकर्त्ताओं को हमेशा किसी भी समाधान के लिये न्यायालयों का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार होगा।
- उपयोगकर्त्ता शिकायतों पर मध्यस्थों द्वारा लिये गए निर्णयों या निष्क्रियता के खिलाफ उपयोगकर्त्ताओं को अपील करने की अनुमति देने हेतु ‘शिकायत अपील समितियों’ का गठन किया जाएगा।
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