सुख दुःख मानव जीवन का आधार है, कर्मों के फल से ही मिलता है मोक्ष- देवी रश्मी किशोरी
धनराज साहू ब्यूरो रिपोर्ट
भैंसदेही ब्लाक के रेणुका नगरी धमनगांव में चैत्र नवरात्रि एवं रामनवमी के पावन अवसर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा महापुराण का आयोजन ग्राम धामनगांव में श्री साहेबराव देशमुख के तत्वावधान में वृंदावन धाम कि प्रसिद्ध कथा वाचक परमपुज्य देवी रश्मी किशोरी जी के मुखारविंद से चल रही है। आज व्यास पीठ पर विराजमान कथा वाचक परमपुज्य देवी रश्मी किशोरी जी ने श्रीमद्भागवत कथा में भगवानों की सुन्दर लीलाओं एवं चरित्रों का वर्णन करते हुए कहा कि देवताओं को क्या आवश्यकता थी लीलाएं करने कि परन्तु मानव कल्याण और संसार को निरंतर चलाने के लिए देवताओं ने लीलाएं कर ग्रंथों के रूप में हमें उपदेश देने और सदमार्ग पर चलने के लिए इनकी रचनाएं की है। कलयुग के कुछ ही पड़ाव पर हम परिर्वतन देख रहे हैं पहले माता-पिता राम-भरत और सीता जैसी आज्ञाकारी पुत्र- पुत्री चाहते थे और होता भी ऐसा ही था। गांव- गांव में लोगो द्वारा एकत्रित होकर रामायण को पढ़ा सुना जाता था। पुत्र- पुत्री पिता कि आज्ञा का पालन करते थे। पुत्र पिता के आसन पर बैठा नहीं करते थे।
फिर थोड़ा परिवर्तन हुआ पिता पुत्र आपस में चर्चाएं करने लगे परन्तु फिर भी अंतिम फैसला घर के बुजुर्ग ही लिया करते जो अंतिम होता था। फिर समय के साथ परिवर्तन हुआ और पुत्र अपने फैसले थोड़ा खुद करने लगा और देखते देखते ही बुजुर्गों और पिता के फैसले खत्म हो गये आज के समय माता-पिता को बच्चे बड़े होने पर गर्व कम डर ज्यादा लगता है कि भगवान सब कुशल रहने देना मंदिर कथा के बजाय आज की पीढ़ी मयखाने,मोबाईल जैसी बुरी आदतों में पड़कर अपने फैसले खुद लेते हैं। जो हमारे हिन्दू सनातन के लिए खतरा है। बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर जरूर बनाएं परन्तु उन्हें राम- भरत कृष्ण-राधा और सीता के संस्कार जरूर दें।
वरना ज़मीन में जैसा बीज बोओगे वैसा ही काटना पड़ेगा। जैसे समय तेजी से परिवर्तन करते हुए बढ़ रहा है और इसे रोकने कि क्षमता केवल आपकी पीढ़ी में है। बच्चों को घरों में बैठाकर हमारे धर्म ग्रंथों और भगवानों के विषय पर चर्चा जरूर करें उन्हें फल कर्मों के विषय बताएं उन्हें थोड़ी तकलीफ़ो का अहसास कराएं तब ही वह वर्तमान और भविष्य की तुलना कर पाएंगे और भगवान राम कृष्ण जैसे आदर्श पुत्र बन पाएंगे और आने वाली पीढ़ी हमारे सनातन धर्म ग्रंथों को जान पाएंगे वरना गुगल के जमाने में सब कुछ बिखर जाएगा। जैसे आज संयुक्त परिवार के बजाय एकल परिवार हो गये। क्योंकि नियम आपने तोड़े हैं ,भोगना भी आपको पड़ेगा। फैसले लेने आपने शुरू किए इस लिए आज आपकी संतानें अपने फैसले खुद ले रही है। आज भी समय है कुछ ज्यादा नहीं बिगड़ा आज भी जिन घरों में संस्कार दिए जाते हैं वहां आज भी दादा- दादी, माता- पिता के आज्ञा के बिना बच्चे अपना फैसला नहीं करते। क्योंकि उस परिवार में पहले से ही बच्चों को आदर्श आज्ञाकारी और निष्ठावान के संस्कार दिए। हमारा जीवन कर्मों से चलता है कर्म से ही सुख और दुःख मिलता है। उसी के अनुसार मोक्ष कि प्राप्ति होती है।और संसार की अंतिम यात्रा भी कर्मों से ही तय होती है।