वन अपराध में वन उपज जप्त नहीं फिर भी वाहन राजसात,लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मिला न्याय

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राजेश साबले 

वन विभाग के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मिला न्याय
बैतूल। मप्र राज्य। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 पर सुप्रीम कोर्ट कहती हैं कि वन अपराध में जप्तषुदा वाहन को तभी राजसात किया जा सकता हैं जबकि वाहन को वनोपज के साथ जप्त किया गया हों। वन अपराध में जप्तषुदा वाहन से वन उपज जप्त नहीं तो कोई वन अपराध घटित नहीं। मप्र हाई कोर्ट कहती हैं कि वन अपराध के प्रत्येक मामलों में वाहन राजसात की कार्यवाही आवष्यक नहीं हैं। कुछ एैसे मामले हो सकते हैं जिनमें वाहन राजसात की कार्यवाही को जायज नहीं ठहराया जा सकता हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के धोषित कानून को दरकिनार कर बैतूल जिले का वन विभाग वनोपज रहित वाहनों को ना केवल जप्त करता हैं बल्कि खाली वाहनों को राजसात भी कर देता हैं लेकिन मुख्य वन संरक्षक को इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता हैं जिससे छोटे वन अपराधों में लाखों रूपए के वाहनों को राजसात करने का काम विभागीय स्तर पर जारी हैं। विधि, न्याय एवं मानवाधिकार का प्रष्न यह हैं कि क्या मामूली कीमत के वन उपज के लिए लाखों रूपए मूल्य के वाहन को राजसात किया जाना उचित हैं?
वन वृत बैतूल के अंतर्गत वन परिक्षेत्राधिकारी चिचोली के आरक्षित वन क्षेत्र क्र0 1170 में पष्चिम आमढ़ाना में वनकर्मियों द्वारा 17 ट्रैक्टर ट्राली 16.12.2017 को जप्त किए गए थें जिन पर आरोप यह था कि वनोपज खनिज रेत का वन क्षेत्र से अवैध उत्खनन कर परिवहन किया जा रहा था। कागजो पर वाहन के साथ वन उपज की जप्ति दिखाई गई थी।
प्राधिकृत अधिकारी एवं उप वनमंडलाधिकारी चिचोली द्वारा धारा 52 के अंतर्गत मामले की सुनवाई करते हुए वाहन का भौतिक सत्यापन में ट्रैक्टर ट्राली में खनिज रेत को नहीं पाया गया। वन विभाग द्वारा वाहन के जप्ति पत्रक में खनिज रेत की मात्रा 2.500 घनमीटर बताई गई थी जबकि वाहनों में खनिज रेत नहीं थी। एसडीओ फारेस्ट ने अपने आदेष 14.08.2017 में वाहनों को राजसात कर लिया गया।
मुख्य वन संरक्षक बैतूल के समक्ष भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 (क) में अपील पर सुनवाई करते हुए 21.01.2019 को आदेष में प्राधिकृत अधिकारी चिचोली को विधि अनुसार आदेष पारित करने के लिए निर्देषित किया गया था। उप वनमंडलाधिकारी चिचोली द्वारा 15.02.2019 को पारित आदेष में अपने पुराने आदेष को दोहरा दिया गया था जबकि भौतिक सत्यापन में जप्तषुदा वाहनों खनिज रेत मौजूद नहीं थी। मुख्य वन संरक्षक के पास पुनः अपील दाखिल की गई जो कि निरस्त हो गई थी।
जिला एवं सत्र न्यायालय बैतूल में भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 (ख) में पुनरीक्षण याचिका 04 वाहन स्वामी की ओर से भारत सेन अधिवक्ता के माध्यम से 28.08.2021 को पेष की गई थी जिसमें 05 ट्रैक्टर ट्राली वन विभाग में 16.12.2017 से वन अपराध में जप्त हैं। न्यायालय ने दोनो पक्षों को सुनने के बाद यह पाया कि जप्तषुदा वाहनों में खनिज रेत मौजूद नहीं हैं और खनिज का मूल्यांकन अधिक किया गया हैं। वनोपज मामूली कीमत की हैं और ट्रैक्टर ट्राली लाखों रूपए की हैं। इसके अतिरिक्त प्राधिकृत अधिकारी एवं उप वनमंडलाधिकारी द्वारा प्रषमन का अवसर वाहन स्वामी को नहीं दिया गया था जो कि उसका कानूनी अधिकार हैं। सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के पूर्व निर्णयों को देखते हुए विद्वान न्यायिक अधिकारी आषीष टांकले द्वारा चार पुनरीक्षण याचिका क्र0 29/21, 30/21, 31/21 32/21 में मुख्य वन संरक्षक बैतूल के आदेषों को विधि अनुसार एवं औचित्यपूर्ण नहीं पाते हुए निरस्त करते हुए पुनरीक्षण याचिकाओं को स्वीकार कर लिया गया हैं।
खनिज एवं वन अपराध के एक्सपर्ट अधिवक्ता भारत सेन अधिवक्ता बताते हैं कि न्यायालय के निर्देषानुसार मुख्य वन संरक्षक बैतूल को अभिलेख पर मौजूद तथ्यों के संदर्भ में पुनः विधिसम्मत् आदेष पारित करना हैं तथा भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 68 (3) में पुनरीक्षणकर्ता प्रषमन करना चाहे तो अवसर प्रदान कर विधि अनुरूप कार्यवाही सुनिष्चित करना हैं। न्यायालय द्वारा वाहन स्वामी वामन यादव, षिवम राठौर, योगेष धुर्वे, कृष्णा राव महाले की पुनरीक्षण याचिकाएॅ स्वीकार करने से वन अपराध में जप्तषुदा 05 ट्रैक्टर ट्राली के छूटने की संभावनाएॅ प्रबल हो गई हैं जबकि 17 में महज 05 वाहन स्वामियों द्वारा पुनरीक्षण याचिका दाखिल की गई थी तथा शेष ट्रैक्टर ट्राली वन विभाग द्वारा पूर्व में निलाम किए जा चुके हैं।