विधि, न्याय एवं मानवाधिकारों के सवालों की जद् में सीसीएफ बैतूल
राजेश साबले
वन विभाग के डाक घर एवं प्रवक्ता की भूमिका में सीसीएफ की अदालत।
बैतूल। मप्र राज्य। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 में वन अपराध में जप्तषुदा वाहन और औजार को सरकार के पक्ष में राजसात करने का विधान दिया गया हैं। सरकार के कानून के उपर वन विभाग ने अपने नियम एवं कानून बना कर रखे हैं। कानून में प्रावधान तो नहीं हैं लेकिन धारा 52 में प्राधिकृत अधिकारी एवं उप वनमंडलाधिकारी वाहन राजसात की कार्यवाही में विचारण न्यायालय आयोजित करते हैं। अदालत में वन विभाग के गवाहों का परीक्षण एवं प्रतिपरीक्षण किया जाता हैं। कानून में प्रावधान तो नहीं हैं लेकिन गवाहों के साक्ष्य लिखे जाते हैं। वनकर्मियों का प्रतिपरीक्षण करने के लिए वाहन स्वामी को अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 30 में अधिवक्ता नियुक्त करने की अनुमति नहीं दी जाती हैं जिसके चलते वाहन स्वामी अपना बचाव नहीं कर पाता हैं और वन विभाग आसानी से वाहन राजसात कर लेता हैं।
अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक बैतूल की अदालत में धारा 52 (क) में वन अपराध क्र0 184/23 में तीन ट्रक, एक बोलीरो एवं एक मोटर साईकल राजसात के आदेष के विरूद्ध अपील लंबित हैं। प्राधिकृत अधिकारी को वाहन मुक्त करने वैधानिक अधिकार धारा 53 में दिया गया हैं लेकिन वन परिक्षेत्राधिकारी सारणी ने वाहन को ग्राम डुलारा से 19.02.2020 को जप्त किया था तब से वाहन कबाड़ बन रहा हैं। इस मामले में वाहन स्वामी पर आरोप हैं कि वन भूमि से कोयला उत्खनन कर वाहन में भरा जा रहा था। तीन वाहनों की परिवहन क्षमता कुल 60 टन हैं लेकिन वाहनों में पाया गया कुल कोयला 01 टन से भी कम हैं। मध्य रात्री में कोयला कौन लोग भर रहे थे, तवा नदी से उत्खनन कैसे किया जा रहा था? उत्खनन के औजार और परिवहन के साधन ट्रैक्टर ट्राली जप्त नहीं किए गए हैं।
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 में उन वाहनों को जप्त किया जाता हैं जिस पर वन उपज का अवैध परिवहन का किए जाने की युक्ति युक्त आषंका रहती हैं। इस मामले में बोलेरो एवं मोटर साईकल में वन उपज नहीं पाई गई थी तो वन विभाग को जप्त करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं था।
मुख्य वन संरक्षक बैतूल की अदालत में मामले की सुनवाई अब दूसरी बार हो रहीं हैं। पहली बार वन अधिकारी आर.पी.राय ने उप वन मंडलाधिकारी शाहपुर को पुनरीक्षित आदेष पारित करने के लिए 12.11.2021 को आदेष दिए थें लेकिन वाहन स्वामी को कोई राहत नहीं मिली थी। उप वनमंडलाधिकारी शाहपुर ए.के.हनवते ने पूर्व आदेष को दोहराने के अतिरिक्त कोई दूसरा काम नहीं किया था। अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक बैतूल की अदालत में पुनः अपील दाखिल की गई हैं जो कि लंबित हैं। मामले में पैरवी कर रहे अधिवक्ता भारत सेन बताते हैं कि अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक बैतूल अपील को स्वीकार या अस्वीकार नहीं कर रहे हैं बल्कि मामले को लटकाने और टालने की कार्यवाही कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के पूर्व निर्णयों को देखते हुए मामले का त्वरित निराकरण किया जा सकता हैं। वन विभाग वाहन को धारा 53 में मुक्त नहीं कर रहा हैं और अपीलीय अधिकारी अपील का निराकरण नहीं कर रहे हैं। आगामी पेषी तारीख का कुछ पता नहीं हैं, प्रकरण किस कार्यवाही के लिए नियत हैं, अपीलार्थीण को कुछ पता नहीं हैं? बल्कि अपीलार्थीगण जल्द से जल्द जिला न्यायालय की शरण में जाना चाहते हैं क्योंकि सीसीएफ की अदालत में कानून और न्याय का नाटक चल रहा हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार में शीध्र न्याय का नागरिक अधिकार मौजूद हैं लेकिन वन विभाग में इसकी कोई अहमियत नहीं दिखाई पड़ रही हैं। वन विभाग के एसडीओ और सीसीएफ स्वयं की अदालत को भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के उपर कोई कोर्ट मानकर विधि, न्याय एवं मानवाधिकार को दर किनार कर वन अपराध के मामलों की सुनवाई करते हैं, जिसका दुष्परिणाम नागरिक भुगत रहे हैं।